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________________ 45454545454545454545454545454545 54545454545FFFFFFFFF वाला प्राणी परम पवित्र अमृतरस का पान करके असीम शान्ति को प्राप्त कर लेता था। "पानी छानकर पीना चाहिए" इस संदेश को प्रसारित करने के लिए "छाणी" इस उपाधि को भी अपने नाम के साथ जोड़ लिया। सदाविहारी, रत्नत्रयधारी, प्रशममूर्ति, अहिंसानुरागी, स्याद्वाद-अनेकान्त सिद्धान्तपथानुगामी शान्तिसागर से एक धारा सूर्यसागर की प्रकट हुई, जो अन्य अवान्तरधाराओं (मुनि परम्पराओं) में विभक्त होती हुई सुमति सागर के बाद ज्ञानसागर में समाहित हुई। ऐसे शान्तिपथ प्रदर्शक आचार्य शांतिसागर जी से हमें भी सदर्शन सम्यगदर्शन के साथ परम शान्ति और केवल ज्ञान की उपलब्धि हो, एतदर्थ अपनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करते हुए अपने आप को धन्य समझता हूँ। संस्कृत विभाग डॉ. सुदर्शन लाल जैन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी स्वानुभूतिक छाणी जी आचार्य शान्तिसागर जी छाणी एक स्वयंभू दिगम्बर जैन तपस्वी थे, जिन्होंने विकट परिस्थिति में भी तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतिमा के समक्ष स्वतः मुनि दीक्षा ग्रहण की और मई, 1944 तक निर्बाध स्वानुभूतिपूर्वक साधनारत रहकर आत्मकल्याण किया। उनकी प्रशान्त तेजस्विता और आभा ने राजस्थान, बिहार आदि प्रदेशों के अंचलों में जिस अध्यात्मरस को प्रवाहित किया, वह अपने आप में अनूठा रहा है। उनके समग्र योगदान का स्मरण करते हुए उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धाञ्जलि प्रस्तुत है। डॉ. भागचन्द जैन भास्कर अध्यक्ष, पालि प्राकृत विभाग नागपुर विश्वविद्यालय नागपुर प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ $44145146145151569644554545455
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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