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वृहज्जैनवाणीसंग्रह
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४३-करुणाष्टक। * करुणा ल्यो जिनराज हमारी, करुणाल्यो।टेका। अहो
जगतगुरु जगपतीजी, परमानंदनिधान । किंकरपर कीजै
दयाजी, दीजै अविचल थान॥ हमारी० ॥१॥ भव । दुखसौं भयभीत हौजी, शिवपद वांछासार। करौ दया
मुझ दीनपैजी, भवबंधन निरबार ॥ हमारी० ॥ २॥ परयो * विषम भवकूपमेंजी, हे प्रभु! काढौ मोहि । पतित उधाऔरण हो तुम्ही जी, फिर फिर विनऊँ तोहि । हमारी० ॥३॥
तुम प्रभु परम दयाल होजी, अशरनके आधार । मोहि दुष्ट । दुख देत हैंजी, तुमसों करहुं तुकार । हमारी० ॥ ४ ॥ दुः
खित देखि दया करैजी, गांवपती इक होय । तुम त्रिभुव* नपति कर्म जी क्यों न छुडावा मोय । हमारी० ॥ ५॥ मब
आताप तबै बुझेजी, जब राबू उर धोय। दया सुधारक सीयराजी, तुम पद पंकज दोय ॥ हमारी०॥६॥ येहि एक
मुझ वीनतीजी, स्वामी ! हर संसार । बहुत धन्यौ हूं त्रास। सैंजी, विलख्यो बारंबार ॥ हमारी० ॥ ७॥ पदमनंदिको * अर्थ लैजी, अरज करी हितकाज । शरणागत भूधरतणीजी, राखहु जगपति लाज ।। हमारी० ॥ ८॥
४४-जिनेंद्र स्तुति। • गीता छंद-मंगलसरूपी देव उत्तम तुमशरण्य जिनेशजी तुम अधमतारण अधम मम लखि मेट जन्मकलेशजी।टेका :