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________________ wwwwwwwwwww * FR- RH A RY । ५२ . बृहज्जैनवाणीसंग्रह २ 1॥१०॥जब कुष्ट रोग था हुआ श्रीपालराजको । मैना सती । तब आपको पूजा इलाजको । तत्काल ही सुंदर किया श्रीपाल राजको। वह राजरोग भाग गया मुक्तराजको ॥ हो । ॥ ११॥ जब सेठ सुदर्शनको मृषा दोष लगाया। रानीके । कहे भूपने सूलीपै चढाया। उस वक्त तुम्हें सेठने निज ध्या1 नमें ध्याया। सूलीसे उतारुस्को सिंहासनपै बिठाया ॥ हो है ॥ १२ ॥ जब सेठ सुधन्नाजीको वापीमें गिराया। ऊपर से दुष्ट फिर उसे वह मारने आया। उस वक्त तुम्हे सेठने दिल । अपनेमें ध्याया। तत्कालही जंजालसे तब उसको बचाया। हो० ॥१३॥ इक सेठके घरमें किया दारिद्रने डेरा । भोजनका ठिकाना मि न था सांझ सवेरा । उस वक्त तुम्हे सेठने । जब ध्यान में घेरा । घर उसके तब कर दिया लक्ष्मीका * बसेरा ॥ हो० ॥१४॥ बलि बादमें मुनिराज सों जब पार न । पाया। तब रातको तलवार ले शठ मारने आया । मुनिराजने निजध्यानमें मन लीन लगाया। उसवक्त हो प्रत्यक्ष तहां * देव बचाया॥हो० ॥१५॥ जब रामने हनुमंतको गढलंक * पठाया। सीताके खबर लेनेको सहसैन्य सिधाया ॥ मग बीच दो मुनिराजकी लख आगमें काया । झठ वारि मूशल1 धारसे उपसर्ग बुझाया ॥ हो० ॥१६॥ जिननाथहीको माथ। * नवाता था उदारा। धेरेमें पडा था वह कुलिश करण विचारा। * उस वक्त तुम्हें प्रेमसे संकटमें चितारा । रघुबीरने सब पीर । तहां तुरत निवारा ॥ हो० ॥१७॥ रणपाल कुंवरके पडीथी।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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