________________
बृहज्जनवाणी
वृहज्जैनवाणीसंग्रह
karn. . .
14
. MananAAAAAn
मम तन मन शीतल एम । अम्रतरस सींचत जेम ॥२॥ .. तुम बोध अमोघ अपारा । दर्शन पुनि सर्व निहारा ॥ * आनंद अतिंद्रिय राजै ॥ बल अतुल स्वरूप न त्याजै ॥३॥ 1 इत्यादिक स्वगुन अनंता । अंतर्लक्ष्मी भगवंता॥ चाहिज * विभूति बहु सोहै । वरनन समर्थं कवि को है ॥ ४॥ तुम
वृच्छ अशोक सुस्वच्छ । सव शोकहरनको दच्छ॥ तहँ चंचरीक गुंजारै । मानो तुव स्तोत्र उचारै ॥५॥ शुभरत्न मयूष विचित्र । सिंहासन शोभ पवित्र ॥ तहँ वीतराग छवि सोहै । तुम अंतरीक्ष मनमोहै ॥६॥ वर कुन्दकुन्द-अवदात । चामर ब्रज सर्व सुहात ॥ तुम ऊपर मघवा ढारै । धरि भक्ति
भान अघटोरै ।। ७ ।। मुक्ताफल माल समेत । तुम ऊर्च र छत्रत्रयसेव ॥ मानो तारान्वित चंद । त्रयमूर्तिधरी दुतिवृन्द
॥८॥ शुभ दिव्य पटह बहु बाजै । अतिशयजुत अधिक । विराजै ।। तुमरौ जस घोकै मानौ । त्रैलोक्यनाथ यह जानौ ॥९॥ * हरिचंदन सुमन सुहाये । दशदिशि सुगंध महकाये । अलि
पुंज विगुंजत जामै । शुभ वृष्टि होत तुम सामैं ॥ १० ॥ * भामंडलदीप्ति अखंड । छिप जात कोटिमार्तड ॥
जग-लोचनको सुखकारी। मिथ्यातमपटल निवारी
॥ ११॥ तुमरी दिव्यध्वनि गाजै । विन इच्छा। * भविहितकाजै ।। जीवादिक तत्त्व प्रकाशी । भ्रमतम
हर सूर्यप्रकाशी ॥ १२॥ इत्यादि विभूति अनंत । वाहिन । अतिशय अरहंत ॥ देखत ममभ्रमतम भागा। हित अहित !