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बृहज्जैनवाणीसंग्रह
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जरा मिटावै ॥ धनि जैनधर्म दीपक प्रगट, पाप तिमिर छयकार है । लखि साहिबराय सुआँखसों, सरधातारनहार है ॥ ११ ॥ इति ।
२४ - दर्शनस्तुति
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छप्पय
तुव जिनेन्द्र दिहियो, आज पातक सब भज्जे । तुव जितेंद दिट्ठियो, आज वैरी सब लज्जे || तुब जिनंद दिडियो, आज मैं सरवस पायो । तुव जिनेंद्र दिडियो आज चिंतामणि आयौ ॥ जै जै जिनंद त्रिभुवन तिलक आज काज मेरो सरयो । कर जोरि भविक विनती करत, आज सकल भवदुख टरचो ॥ १ ॥ तुव जिनंद मम देव सेव मैं तुमरी करिहौ । तुव जिनिंद मम देव, नाथ तुम हिरदै धरिहौ । तुव जिनंद मम देव, तुही साहिब मै बंदा । तुव जिनंद मम देव, मही कुमुदनि तुम चंदा ॥ जै जै जिनंद भवि कमल रवि, मेरो दुःख निवारिकै । लीजै निकाल भव जालतैं, अपनो भक्त विचारकै ॥ २ ॥ इति ॥ २५- श्रीदर्शन पचीसी
तुम निरखत मुझको मिली, मेरी संपति आज । कहां चक्र'वतिसंपदा, कहाँ स्वर्ग साम्राज ॥ १ ॥ तुम वदत जिनदेवजी, नित नव मंगल होय । विघ्न कोटि ततछिन टरै, लहहिं सुजस सब लोय ॥ २ ॥ तुम जाने विन नाथजी, एक स्वासके माहिं । जन्ममरण अठदश किये, साता पाई
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