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१४६६ बृहज्जैनवाणीसग्रह
उन्मान ॥ कोशांचीपुर मदन नरेन्द्र । रानी सती करै आनंद ॥२७॥ पुरुषोत्तम नृप सुन्दर जान । विद्यावंत सुगुणकी । खान ॥ जो सुगंध मदनावलि जाय । सो पुरुषोत्तमको परनाय ॥२८॥ राजा मदनसुन्दरी वाल । सुखसों जात न। जान्यो काल ॥ एक दिवस मुनिवर बंदियो। धर्मश्रवण मुनिवर कियो ॥२९॥ हाथ जोड़ पूछै तब राय। महा। मुनींद्र कहो समुझाय ॥ मो गृह रानी मदनावली । ता शरीर शौरभता भली ॥३०॥ कौन पुन्यसे सुभग सुरूप । सुरवनितासों अधिक अनूप ॥ राजा वचन मुनीश्वर सुने।। सब चिरतांत रायसो भने ॥ ३१ ॥ जैसें दुर्गधा व्रत लह्यो। तैसी विधि नरपतिसों कह्यो। सुने भवांतर जोड़े हाथ। दीक्षावत दीजै मुनिनाथ ॥३२॥ राजाने जब दीक्षा लई।।
रानी तवै अर्जिका भई ॥ तप कर अंत स्वर्गको गई। सोलम। *वर्ग प्रतेंद्र सो भई ॥३३॥ वाइस सागर काल जो गयो।। * अंतकाल ता दिवसों चयो । भरत सु क्षेत्र मगध तहँ देश।
वसुधा अमर केतुपुरवेश ॥ ३४ ॥ ता नृप गेह जनम उन । लयो । जो प्रतेंद्र अच्युत दिव कह्यो । कनककेतु कंचन
युति देह । वनिता भोग करै शुभ गेह ॥३५॥ अमरकेतु * मुनि आगम भयो । कनककेतु तहँ वंदन गयो। सुन्यो सुधर्म ।
श्रवण संयोग। तजे परिग्रह अरु भवभोग ॥३६॥ घाति घातिया केवल लयो। पुनि अधाति हनि शिवपुर गयो ॥ व्रत * सुगंधदशमी विख्यात ।ता फल भयो सुरभियुत गात ॥३७॥