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बृहज्जैनवाणीसंग्रह
४३७ ।
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२२८-बारहभावना।
चाल छन्द १४ मात्रा 2. अनित्यभावना-जोवनगृह गोधननारी। हयगयजन
आज्ञाकारी॥ इन्द्रीयभोग छिन थाई । सुरधनु. चपला चपलाई ॥१॥
२ असरनभावना-सुर असुर खगाधिप जेते, मृग ज्यों। * हरिकाल दले ते। मणि मंत्र तंत्र बहु होई, मरते न बचाने । * कोई ॥२॥
३ संसारभावना-चहुंगति दुख जीव भरे हैं, परिवर्तन पंच
करे हैं । सवविधि संसार असारा, यामें सुख नाहिं लगारा॥ २४ एकत्वभावना-शुभ अशुभ करमफल जेते, भोगै जिय। * एकहि तेते । सुत दारा होय न सीरी, सब स्वारथके हैं भारी॥ । ५ अन्यत्व भावना-जलपय ज्यों जियतन मेला, पै। * भिन्न नहिं भेला। तौ प्रगट जुदे धनधामा, क्यों है इक मिल सुत रामा ।।५।।
६ अशुचित्व भावना-यह रुधिर राधमल थैली, कीकस। * बसादित मैली ॥ नवद्वार बहै घिनकारी, अस देह करै किम । यारी ॥६॥
७ आस्रव भावना-जो जोगनकी चपलाई, ताते है आस्रव भाई। आस्रव दुखकारि घनेरे, बुधवंत तिन्हें निरवेरे॥ ८संबर भावना-जिन पुण्य पाप नहिं कीना, आतम
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