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४०४ वृहज्जैनवाणीसंग्रह
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* केवली सेव' ॥२चन्दनके पासाविषै, चारों ओर सुजान। । एक एक अक्षर लिखो श्री 'अरहंत' विधान ॥३॥ तीन
वार डारो तबै, करिवर मन्त्र उचार । जो अक्षर पांसा कहै, ताको करो विचार ॥४॥ तीन मन्त्र हैं तासुके, सात सातही। वार। थिर है पांसा ढारियो करिके शुद्ध उच्चार ॥५॥ जानि शुभाशुभ तासुतै, फल निज उदयनियोग । मन प्रसन्न है
सुमरियो, प्रभुपद सेवहु जोग ।।६॥ में प्रथम मन्त्र-ओं हीं श्रीं बाहुबलि लंबबाहु ओं क्षां क्षी
सुं क्षेः क्षों क्षः उर्ध्व भुजा कुरु कुरु शुभाशुभं कथय कथय । । भूतभविष्यति वर्तमानं दर्शय दर्शय सत्यं ब्रहि सत्यं ब्रहि स्वाहा।
(प्रथम मंत्र सात बार जपना) दूसरा मंत्र-ओं हः ओं सः ओंक्षः सत्यं वद सत्यं वद स्वाहा
(सात बार जपना) तीसरा मन्त्र ओं हीं श्रीं विश्वमालिनी विश्वप्रकाशिनी। . अमोघवादिनी सत्यं बहि सत्य बहि राबयि रायि वि. मालिनी स्वाहा।
(यह मन्त्र भी सात वार जपना) 1 * मन एकत्र करि विनय सहित अपना अभिप्राय विचारकरि श्री । * अरहंत भगवानके नामाक्षरका पांसा तीन बेर ढालना जो जो वरन पड़े। तिस वरनका भेद पाके फलका निश्चय करना। जिन मार्गमें यह बड़ा । निमित्त है इसे हमने लिखा है कि अपना वा परोया उपकार होय।। 1(बृन्दावन)
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