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________________ *-*- * - * *- * वृहज्जैनवाणीसंग्रह ३७३ । हरिकान्ता ७ सीता ८ सीतोदा ९ नारी १० नरकांता ११ स्वर्णकूला १२ रूप्यकूला १३ रक्ता १४ रक्तोदा यह * १४ महानदी एक मेरुसंबंधी हैं, पांचों मेरुकी ७० महा। नदी हैं। १९१-बीस नाभिगिरि। १ श्रद्धावान २ विजयवान ३ पद्मवान ४ गन्धवान यह। यह एक मेरुसंबन्धी ४ नाभिगिरि हैं, पांचों मेरुके २० * नामिगिरि हैं। १९२-एकसौ सत्तर विजया पर्वत ।। १६० विजार्ध पर्वत तो १६० विदेहक्षेत्रमें और ५ भरत-1 क्षेत्रमें, ५ ऐरावतक्षेत्रमें इसतरह विजया पर्वत १७० हैं। * १९३-एकसौ सत्तर वृषभगिरि पर्वत। । । १६० वृषभगिरि तो विदेहक्षेत्रोंमें, ५ भरतक्षेत्रमें और ५ ॥ ऐरावतक्षेत्रमें ऐसे वृषभगिरि १७० हैं । १९४-चौबीस लोकांतिक देव । १ सारखत २ आदित्य ३चह्नि ४ अरुण ५ गर्दतोय ६ तुषित ७ अव्याबाध ८ अरिष्ट ९ अग्न्याभ १० सूर्याम ११ ॥ * चन्द्राभ १२ सत्याभ १३ श्रेयस्कर १४ क्षेमंकर १५ घृषभेष्ट । १६ कामचर १७ निर्माणरज १८ दिगंतरक्षित १६ आत्मरक्षित १२० सर्वरक्षित २१ मरुत २२ वसु २३ अश्व २४ विश्व।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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