SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ viwww.www wwvvv wwwwwwwwww ___ वृहज्जैनवाणीसंग्रह ३६६ १७९-बीरूयमकगिरि। सीता नदीके पूर्व तटपर 'चित्र' नामा एक यमकगिरि है, पश्चिम तटपर 'विचित्र नामा एक यमकगिरि है, सीतोदा नदीके पूर्व तटपर 'यमक' नामवाला एक यम* गिरि है और पश्चिम तटपर 'मेघ' नामवाला एक यमक गिरि है, इसप्रकार एक मेरुसम्बन्धी चार यमगिरि हैं ऐसे पांचौ मेरुसम्बन्धी २० यमगिरि हैं। १८०-एकसौ सरोवर। र देवकुरु भोगभूमिमें सरोवर ५, उत्तरकुरु भोगभूमिमें * सरोवर ५, दोनों ओरके दोनों भद्रशाल बनोंमें ५-५ एसे। एक मेरुसम्बन्धी २० और पांचों मेरुके १०० सरोवर हैं। १८१-एक हजार कनकाचल सीता और सीतोदा महानदियोंमें देवकुरु भोगभूमि । और उत्तरकुरु भोगभूमिके २ क्षेत्र तथा इन ही सीता और। सीतोदा महानदियोंमें पूर्व और पश्चिम भद्रशालके २ क्षेत्र, इन चारों क्षेत्रोंमें पांच पांच द्रह हैं, ऐसे इन बीस द्रहोंके किनारेपर पक्तिरूप पांच पांच कांचनगिरि हैं, ऐसे १ मेरुके * २०० कांचनगिरि और पांचों मेरुके १००० कांचनगिरि हैं। १८२-चालीस दिग्गज पर्वत । * पूर्व भद्रशालमें 'पद्मोत्तर' और 'नील' २ दिग्गज देवकुरु । में 'सस्तिक' और 'अंजन २ दिग्गज, पश्चिम भद्रशालमें। * कुमुद और पलाश २ दिग्गज, उत्तरकुरुमें अवतंश और
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy