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________________ *KAKKARNERARKe* vavvvvvvvvvvv wwwwwwwwwwwwwww वृहज्जैनवाणीसंग्रह अभिनंदन आनंदपूर ॥ जय सुमति सुमतिदायक दयाल । जय पद्म पद्मदुति तनरसाल ॥ जय जय सुपास भवपासनाश । जय चंद चंदतनदुतिप्रकाश ॥ ४ ॥ जय पुष्पदंत दुतिदंत सेत । जय शीतल शीतलगुननिकेत । जय श्रेयनाथ * नुतसहसभुज्ज । जय वासवपूजित वासुपुज्ज ॥५॥ जय विमल विमलपददेनहार । जय जय अनंत गुनगन अपार । जय धर्म धर्म शिवशर्म देत । जय शांति शांति पुष्टी करता। जय कुंथु कुंथु वादिक रखेय । जय अर जिन वसुअरि छय करेय ।। जय मल्लि मल्ल हतमोहमल्ल । जय मुनिसुव्रत । व्रतशल्लदल्ल ॥ ७ ॥ जय नमि नित वासवनुत सपेम । जय नेमिनाथ वृषचक्रनेम । जय पारसनाथ अनाथनाथ । * जय वर्द्धमान शिवनगर साथ ॥ ८॥ घत्ता-चौबीस जिनदा आनंदकंदा, पापनिकंदा सुखकारी। तिनपदजुगचंदा उदय अमंदा, वासव वंदा हितकारी ॥९॥ ___ओं ही श्रीवृषभादिचतुर्विंशतिजिनेभ्यो महाध्यं निर्वपामीति स्वाहा * सोरठा-मुक्ति मुक्ति दातार, चौबीसौं जिनराजवर। तिनपद मनवचधार, जो पूजै सो शिव लहै।।इत्याशीर्वादः॥ ११२-श्रीआदिनाथजिनपूजा । अडिल्ल-परमपूज्य वृषभेश स्वयंभूदेवजू । पिता नाभि । * मरुदेवि करै सुर सेवजू । कनक वरन तनतुंग धनुषपनसततनो । कृपासिंधु इत आय तिष्ठ मम दुख हनो ॥१॥ ओ ह्रीं श्रीआदिनाजिनेन्द्र ! अन अवतर अवतर । संवौषट।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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