________________
*
--
-
-
-
---- - -- वृहज्जनवाणीसंग्रह
wwww
क्षमहु दयानिधि । यह पडिकोणो कियो आदि षटकर्ममाहि विधि ॥ ५॥
द्वितीय प्रत्याख्यान कर्म ! इसके आदि वा अंतमें आलोचना पाठ बोलकर फिर
तीसरे सामायिककर्मका पाठ करना चाहिये।
जो प्रमादवशि होय विराधे जीव धनेरे। तिनको जो। से अपराध भयो मेरे अघ ढेरे। सो सब झूठो होउ जगतपतिके
परसादै । जा प्रसादतै मिलै सर्व सुख दुःख न लाधै ।।६।। मैं पापी निर्लज्ज दयाकरि हीन महाशठ । किये पाप अघ-1 ढेर पापमति होय चित्त दुठ॥ निदू हूं मै वारवार निज जियको गरहं । सब विधि धर्म उपाय पाय फिर पापहि करहूं । * ॥ ७॥ दुर्लभ है नरजन्म तथा श्रावककुल भारी । सतसंगति
संजोग धर्मजिनश्रद्धा, धारी । जिनवचनामृत धार समाव । जिनवानी। तोह जीव संधारे धिक धिक धिक हम जानी। ॥८॥ इद्रियलंपट होय खोय निज ज्ञान जमा सव । अज्ञानी जिमि करै तिसी विधि हिंसक है अव ॥ गमनागमन करतो। जीव विराधे भोले । ते सब दोष किये निंदू अब मन वच तोले ॥९॥ आलोचनविधिथकी दोप लागे जु घनेरे । ते सब दोष विनाश होउ तुम तें जिन मेरे॥ वारवार इसभांति मोह- 1 मद दोष कुटिलता। ईर्षादिकतै भये निंदिये जे भयभीता ॥१०५
३। तृतीय सामायिक भावकर्म । सब जीवनमें मेरे समताभाव जग्यो है। सब जिय मोसम । * -
-5-*--*- *- * -*