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वरणादि कम मलने बाल अभ्यंतर तप घडे दूर करी पोताना आत्म तत्त्वनी एवंभत नये सिद्धि करी अर्थात् सर्वे श्रास्म गुणो संपूर्ण निर्मल तथा स्वाधीन करी लीधा छे माटे हवे कई पण करवान आपने बाकी रह्यं नथी थी श्राप निष्क्रिय बिरुदने संपूर्ण प्राप्त थया छो, अनंतानंदना स्वामी थया छो तथा अात्म धर्मने मलिन करवाना तथा भव भ्रम. साना निमित्त अज्ञान मिथ्यात्व कषाय अने योगनो सर्वथा अभाव कर्यो छे तेथी श्रापनो कोइ पण गुण पर्याय हवे कोइ पण काले रंचमात्र पण मलिन धवानो नथी तथा तेमज ते सिद्धि अवस्थाथी भाप, कोइ पण काले च्यूत थवाना नथी. द्रव्यास्तिक नये आप सदा अवस्थित रही चेतनतामां समाता पोताना शुद्ध अनंत पर्यायन राज्य भोगवो छो. ज्ञानादिक सर्वे पर्यायोने स्वकार्य करवामां निरंतर प्रवर्तीवो छो अर्थात् ज्ञान गुण बडे अनंत द्रव्यना त्रिकालवर्तीनंत गुण पर्यायने समकाले प्रत्यक्षपणे जाणो छो, दर्शन गुण घडे सर्वे द्रव्यना अस्तित्त्वादि सामान्य स्वभावने समकाले देखो छो, चारित्र गुण वड़े सर्व परभावथी निवृत्त पणे अनंत ज्ञानादिक स्वधर्ममां निरंतर रमण करो छो अने श्राप, आत्म