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सम्यक्दर्शन रूप, चारित्र ते स्वभावाचरण रूप - एम ज्ञानानुयायी अपना अनंत गुणो पोताना शुद्ध परिणामे परिणमे के कारण के आप कारक चक्र ते शुद्ध अबाधक पणे सदा परिणमे छे (१) स्वधर्म कर्त्ता ते कर्त्ताप (२) स्वधर्म परिणाम ते कार्य (३) स्वधर्मानुयायी चेतना शक्ति ते करण (४) साध्य गुण शक्तिनुं प्रभवु ते संप्रदान (५) पूर्व पर्यायनुं निवर्त्तन ले अपादान (६) स्वगुणनो आधार श्रम सत्ताभूमि ते अधिकरण-एम गुण पर्यायनी तथा कारक परिणतिनी अनंतता घे तेथी कोइ पण आत्म धर्मने विराधक पणे रंघ मात्र समय मात्र पण परिणमता नथी तेथी आप सदा अहिंसक नामनुं सर्वोत्कृष्ठ बिरुद्ध धरावो छो ॥ ९ ॥
एम अहिंसकता मर्या, दीठो तुं जिनराज ॥ प्र० ॥ रक्षक निज पर जीवोनो, तारण तरण जिहान ॥ प्र० वा० ॥१०॥
अर्थ:- एम स्वपर जीवना द्रव्य भाव प्रापर्नु रक्षण करनार तथा श्रगाध कषाय रूप जलथी भरेला संसार समुद्रमांथी तारण तरण जहाज रूप हे जिनेश्वर ! हे करुणा निधान ! या जगत् त्रयमां मां सर्वांगे दयामय में आपनेज जोया ॥ १० ॥
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