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________________ २७२ भवणे वियलं, खविज्ज सुर तिरि नरय विउव्वि श्राहारे । मुरलंगे ॥२८॥ दुगचौ पु०वी अपज्जा, वकिय सामन्न उरलोहें थोण तिग्गं, सुस्सर दुस्सर पसत्थ गई आयव पणदुग, सीसं विणु अपज देवोहे नाययुग, दुहग तिग कित्ति सदनीय खेबहु, सुर पुव्वी ही ही परधादुगसर दुस्सर, यगई सगई पमीस विणुमीसे । संघयण छक्क संठारण, पंच अंतिम ओराल दुग पमत्तोहे ॥ ३१ ॥ आहारे न पुमित्थि थीणनिय कुगई दुसरयं । वज्जहु तम्मीसे पुण, सुसर सुगई अपरधा दुगं ॥३२॥ थावर चउजाइ आयम, नारय तियं च तित्थं च । श्रयवपुंथोवेओ, विणु पुरसे प्रोह सत्तसयं ॥३३॥ इत्थिसु इत्थि खेवो, सढे सुरतियहारग, पुं दुगतित्थ अपसत्था । जुश्रमीसे ॥२ ॥ कुखगईहुड | वेव्वे ||३०|| हारगदुगपुर सवेअविच्छेओ । विणा अन्ना दुगे आहे, मिच्छेपगईय मिच्छ विभंगे चउजाई, श्रहो ॥ ३४ ॥ ॥ पचइया | थावर पुव्विहार दुग ॥ ३५ ॥ 1 मीस दुगायवतित्थं, विणुमिच्छोहे पि मिच्छ सासखि । ताप तिगे समदिट्ठी, पच्चइया आहार दुग सहिश्रा ॥ ३६ ॥ कोदादिसु परबारस, कसायतित्थं विमुत्तु उहब बेयकसाय तिएनव, लोभे दश गुणि सुगुणठाणा ॥ ७ ॥ समई एत्थे पुण, पम्मत्त जुग्गा इवंति इसीई । संदित्थी हाण दुग, विणुमण नाणेय परिहारे ॥ ३८ ॥
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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