________________
२६७ है मेरे प्रीउ क्यु न आप विचारो। कइस हो, कइसै गुणधारक, क्या तुम लागत प्यारोश टेक । तजि कुसंग कुलटा ममता को, मानो वयण हमारो। जो कछु झूठ कहे इन में तौ, भौकू संस तुम्हारो ।२। मे। यह कुनार जगत की चेरी, याकौ संग निवारौ। निरमल रूप अनूप अवाधित, आतम गुण संभारौ।३। मे मेटि अज्ञान क्रोध दसम गुण, द्वादश गुण भी टारो। अक्षय अबाध अनंत अनाश्रित, 'राजविमल'पद सारो 181 मे० ।
-
१० चरित्र सुख वर्णन द्वादश दोधक पर गुण सै न्यार रहै, निज गुण के आधीन । चक्रवत्ति से अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन ।। इह नित इह पर वस्तु की, जिने परिख्या कीन । चक्रवर्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन ।२। जिणहुँ निज, निज ज्ञान सु, प्रहे परिख तत्व तीन । चक्रवर्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित नीन । दस विध धरम धरइ सदा, शुद्ध ग्यांन परीवीन । चक्रवर्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन ।४। समता सागर में सदा, झील रहे ज्यु मीन । चक्रवर्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन । आसा न धरै काहू की, न कबहूँ पराधीन । चक्रवर्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित नीन ।।