________________
२५ शुकल ध्यान हिवरणां नहीं, इण पंचम दूसम आरइ रे । धरम शुकन दोइ ध्यान सू,तिण प्रीति घणी मन माहरइ रे ॥३॥ युग प्रधान जिणचंद ना, शिष्य पाठक गुणे सवाया रे। पुन्यप्रधान शिष्य गुण निला, श्री सुमतिसागर उवमाया रे ॥४॥ साधुरंग वाचक वरु, तसु सीस पंडित विख्याता रे। . राजसार पाठक अछ, जे जिनमत सूं अति राता रे ॥शा ज्ञानधरम शिष्य तेहना, वाचक पदना धारी रे। . तासु सीस राजहंस नउ, मुनि राजविमलासुविचारी रे॥६॥ तिण ए ध्यान तणउ रच्यउ, तवन शीतल जिन केरउरे। भणतां गुणतां संपदा, दिन २ उछव अधिकेरउ रे ॥णा इति ध्यान चतुष्क स्तवन ।। पं० देवचन्द्र कृतं ।।
• लिखतं पं० दुगंदास मुनिना (पत्रांक २ नहीं मिला) पत्र ४: पंक्ति ११ अ० ३६४० ४दीपचंद्रजी का दीक्षावस्था का नाम है। 1 देवचन्द्रजी का दीक्षावस्था का नाम है ।
-
३ लींबडी शान्ति जिन स्थापना स्तवनम् . श्रावो सजन जन जिनवर वंदन, श्री शान्तिनाथ गुण वृंदा रे। जस गुण रागे निज गुण प्रगटे, भाजे भव भय फंदा रे ॥१॥ विश्वसेन अचिरा नो नंदन, पूरण पुन्ये लहीये रे । भ्यांन एकत्वे तत्व विबुद्ध, शुद्धातम पद ग्रहीये रे ॥२॥