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करड तपस्या नित्य, मन मइ जे पद चाहइ । भण्यउ नियाणो नाम, पात अंत्य अवगाहइ ।। १८ ॥
॥ इति आतध्यान ||
सदा त्रिशूलउ शिर रहै, आंखे क्रोध अपार । बोलइ इम कडूआ वचन, मखइ मुकार चकार ॥१॥ दुष्ट परिणामी खल सदा, विनय हीन वाचा (ल)
( पत्रांक २ नहीं मिलने से रौद्र ध्यान का शेप वर्णन व धर्म ध्यान का प्रारंभिक वर्णन अधूरा रह गया है ) ....... नवि करड, प्रथम पायौ तिको जागा रे ॥३॥ ए० ।। एह मुझ जीव अनादिनो, कर्म जंजीर संयुक्त रे । पाडूआ कर्म कलंक थी, कीजस्यह किण दिनइ मुक्त रे ।।४
आत्मगुण परगट कदि हुसै, छोडि पर पुद्गल संग रे । एह विचार अह निशि करइ, यह बीजो ध्रम अंग रे ॥५ जोव उद्य सुभ कर्म रइ, पामइ छइ सुक्ख अपार रे। अशुभ उदय दुक्ख ऊपजइ, एह निश्चय करि धार रे ॥६ नरक मइ दुख जेतई सह्या, तेह आगे किसू एह रे । पाय तीजइ इसउ चीतवइ, इम करइ भव तणउ छेह रे ।। ७ शब्द प्राकार रस फरस सब, गध संस्थान संघयण रे । रूप ध्यावइ वली आपणउ, तजीय मोहादि वलि मयण रे ।।८।।