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________________ २४१ तेश्रोनु तपादिक सर्वे, अनुष्ठान कर्मबंधना कारण. . विषे सफल थाय एटले नवा कर्मबंधननुं कारण थई शके नहि; कारण के सकाम निर्जरा तो सम्पज्ञानेज थाय--"जेय बुद्धा महाभागा, वीरा सम्मत्त दंसिणो, सुद्धं तेसिं परकंतं, अफलं होइ सव्वसो,॥ अर्थ:-जे सम्यक्ज्ञान सम्यक्दर्शन सहित छे तेज बुध पुरुष थे, जे पूज्य छे, जे साचा शूरवीर छे,अने तेश्रोनोज तपादिक अनुष्ठानमा उद्यम-परा: क्रम शुद्ध जाणवो, अने तेश्रोनुं अनुष्ठान नवां कर्म बंधन अटकावी शके छे तथा सकाम निजरानो हेतु छे. तहेतु अनुष्ठान-सदनुष्टान रागेण, तद्धेतुमार्गगामिनां ।ए तच चरमावत्तेऽनोभोगाव्यो दविना भवेत् ॥ धर्मयौवनकालोय, भवबालदशा परा ॥ अत्रस्यात् सक्रिया रागोऽन्यत्र चासत् क्रियादरः ।। अर्थ -चरमपुद्गल परावर्ते धर्मना यौवनकाले घालदशा 'टले थकेमार्गानुसारी पुरुष शुद्धानुष्ठानना
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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