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२१४ थयो माटे आप निरंतर अविनश्वर पदमा परमानंद , भोगयो छो.
लेश्याना हेतु कषाय, योग छे पण श्राप तो कषाय तेमज योगधी सर्वथा मुक्त थया छो माटे अलेशी छो.
बली हे भगवंत ! आपनी प्रभुता पण हवे ध्रुव (निश्चल ) थई छे, संसारी जीवो अज्ञान वशे पोताली सत्तासिनो मर्यादा उलंघी परक्षेत्रे परगुण पर्यायोली प्रभूता चाहे छे, एहवा अन्यायी पुरूषोनी कृत्रिम प्रभुता लाश पामे. परंतु आम न्याय शिरोमणी होवाथी पर गुण पर्याय विषे पोतानी प्रभुता स्थापन करता नथी. निरंतर पोताना शुण पर्यायां संतुष्ट छो. एम अापनी प्रभुता एक क्षेत्री, अप्रथग्भूत, नथा समवाय संबंधे होवाथी तेनो कोइ पण कारणे वियोग थवा संभव नथी माठे आफ्नी प्रभुता खरेखर ध्रुव निश्चल छे. आपनी प्रसुताने कोइ पण स्खलना करवा समर्थ थई शके तेम नथी. जे अन्यायी रूष पोताणें घर छोडी पारके वेर चोरी करवा जाय तेनुं धन वीजा चोगे वडे पहेला लूटा जाय, पण जे न्यायी पुरुष बीजाना. पदार्थनी आकांक्षा नहि राग्वतां पोताली