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________________ १७४ श्रात्मभावमा वर्ते छे ते मोक्षना हेतु केम बनी शके १ ॥ ५ ॥ ॥ परमानद उपायवा, प्रभु पुष्ट उपाय ।। तुजसम तारक सेवतां, पर सेवन थाय ।। चंद्र०॥६॥ अर्थः-ते कारणमाटे हे चद्रबाहु प्रभु परमानंद पद-मोक्षपद प्राप्त करवामां श्रापज पुष्ट उपाय छो. 'पुष्ट हेतु जिनेंद्रोयं, मोक्ष सद्भाव साधने" हे प्रभु ! आप जेवा पूज्य पुरुषनी सेवा करतां अन्य जीव तथा पुद्गलनी पाशा तृष्णा तथा सेवा मटी जाय, करवी न पडे ॥ ६॥ ॥शुद्धातम संपति तणा, तुम्हे कारण सार ॥ देवचद्रं अरिहंतनी, सेवा सुखकार ॥ चंद्र०॥ ७॥ अर्थः-अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतमुख तथा अनंतवीर्यरूप परमपवित्र, अविनश्वर भने स्वाधीन प्रखूट लक्ष्मी प्रगट-प्राप्त करवाना, हे भगवंत ! आपज साचा कारण छो. कारण के ते केवल ज्ञा
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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