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१०६ आवर्तने अधरे”. “जह मूलंमि विणठे, दुमस्त परिवार नच्छि परिवुढी । तह जिण दसण भठा, मूल विणठा ण सिझति ॥" . जेम मूल विनष्ट, वृक्ष शाखा परिशाखानी परिवृद्धि पामे नहि, तेमधर्मनुं मूल सम्यक्दर्शन
नष्ट थत्तां मोक्ष प्राप्ति थाय नहि. ___ “जिण पणत्त धम्म, सद्दहमाणस्त होइ
रयणमिणं । सारं गुण रयणाणय, सोवाणं पढम मोरकस्त ॥” . ____ गुण रत्नाकरमा सारभूत जे सम्यक्दर्शन ते श्री जिन प्ररुपित धर्मनी श्रद्धा राखनारने होय छे अर्थात् नयनिक्षेप पक्ष प्रमाण युक्त जिन प्ररुपित तत्त्वनी यथार्थ श्रद्धा ते सम्यक्दर्शन छे जे मोक्षनु प्रथम सोपान ( पगथी उं) छे. "संजम रहिअंलिंगं, दंसण भठं न संजम भाणयं । आणा होणं धम्म, निरत्थय होइ
सव्वंपि ॥”
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साधुनो लिंग-वेश, संजम विना शोभा पामे