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अधक भावमां व छे तेनी बचन अने कायानी ऋिया पण प्रबंधक भावमांज गणाय, संवर हेतुज गणाय. यद्यक्तं - भावास्त्रवाभावमयं
प्रपन्ना,
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एव.
द्रव्यास्त्रवेभ्यः स्वत एव भिन्नः ज्ञानी सदा ज्ञान मयैक भावो, निरास्त्रवो ज्ञायक एक एम द्रव्यसंवर तथा भावसंवरना स्वामी थइ कर्मबंधनो परिहार करी आत्मवीर्यने निर्मल रत्नत्रयमां सहायभूत करी पोताना निर्मल एक परमात्मतत्त्वमां स्थिर तल्लीन पणे वर्त्ततां " क्षायिक भाव समायरे " शुद्धात्म परिणतिनो । व्याघात करनार घातीया कर्मनो समूल क्षय करी अनंतज्ञान अनंतदर्शन / अनंतसुख अनंतवीर्य रूप पोतानी अनुपम अविनश्वर केवल लक्ष्मीने वर्या, तेरमा गुणस्थाने विराजमान थया ॥ ६ ॥
॥ चक्र भ्रमण न्याय सयोगता, तजी कीध अयोगी धामरे || अकरण वीर्य अनंतता, निजगुण सहकार अकामरे ॥ मन० ॥ ७ ॥
अर्थः- पछी चक्रभ्रमण न्याये अर्थात् चक्रने फेरवचा माटे कुंभार चक्रमां दंड घाली बहु जोरथी