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दसवां सर्ग
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( २४ ) नितान्त एकान्त-निवास-सस्पृही' कुमार को थी सरि मोद-दायिनी, कभी-कभी आ उसके समीप वे विचारते जीवन का रहस्य थे।
( २५ ) दिनेश की वारिद की सुता नदी, हिमाद्रि की कानन की प्रिया नदी, अखंड प्रालेय-विनि सता नदी बही महावात-प्रकपिता नदी।
( २६ ) कुमार नि सग नदी समीप मे सदा-महा-चिंतन-शील भाव से विरक्त-नि श्वास-समेत देखते तटस्थ-पुष्पावलि धर्म-मूच्छिता।
( २७ ) महान गभीर तथैव निर्मला, स-शक्त है किन्तु अमन्यु-भाविनी, प्रवाह तेरा सरि। श्रीकुमारको बना समुत्तेजक, किन्तु सात्त्विकी।
'इच्छुक ! 'अकेले।