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वर्द्धमान
( १२ ) नवांगना की रति-कामना-समा, तथैव लज्जा इव प्रोट नारि की, कि स्वैरिणी' की नियमानुवृत्ति-सी अन्य होती क्षण में दिन-प्रभा ।
स-भास यो कोरक कुंद-पुष्प के विराजते पल्लव-अंतरिक्ष में, यथैव हो जीत-विभीत तारिका छिपी हुयी कुंद-लता-समूह में।
( १४ ) दिनेन का आतप मंद हो गया, निगेग की भी अति गीत चद्रिका, महान व्यापा निगिरत-शैत्य यो न अग्नि मे तेज रहा विशेष था।
( १५ ) निवेग-वातायन-काच-पी० पै तुषार के चित्र विचित्र हो गये; सुकर्णिका' के, सरसीरहादि के
अनूप थे गुच्छक-से लते हुये । 'पुश्चली स्त्री। कलिया। पाला । गुलाब ।