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वर्द्धमान
( ५१ ) "अत उठो, हे त्रिशले । सुलोचने ! नरेन्द्र-जाये। पति-भक्ति-तत्परे ! प्रसक्त हो सत्वर धर्म-ध्यान में पवित्र आदर्श-चरित्र आप है।"
( ५२ ) मनोरमा श्रोत्र'-सुखावहा तभी हुई महा-मगल-गीति, कामिनी प्रवृद्ध होके, शयनाक छोड़क उठी, लगी नित्य-निमित्त-कार्य मे।
( ५३ ) विशाल-नेत्रा हरिणी-समान सो, सुधाशु-आस्या रजनी-समान सो, उठी चली यो त्रिशला मदालसा सु-मद-पादा करिणी-समान सो।
( ५४ ) समेत-कल्याणक नित्य की क्रिया समाप्त सामायिक आदि ज्यो हये, निवृत्त हो सत्वर प्रातराश' से गयी सभा-मध्य सखी-समेत सो।
'कान । 'प्रभात का भोजन ।