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________________ वर्द्धमान ( ५२ ) तुरन्त वन्दी-जन गान गा उठे, मृदग बीणा बहु बाजने बजे समेत-आनद्ध'-सुषीर झल्लरी वजी, जभी पुण्य-प्रभात आ गया। "उठो, उठो, देवि प्रभात हो गया करो सभी सत्वर योग्य कार्य, वे समृद्धि की जो तति' वश मे करें अशेष कल्याण त्रिलोक में भरे । [ द्रुतविलंवित ] ( ५४ ) "जिस प्रकार, शुभे । दिशि पूर्व के उदर-मध्य दिनेश छिपा हुआ, निहित है सुत यो तव कुक्षि मे सकल लोक-प्रकाशिनि ज्योति ले । "अपगता भव-यामिनि हो चली, उदय है शुभ ज्ञान-प्रकाश का, अलस-अवर त्याग उठो, उठो , जग गया जग मे जन धन्य सो।" 'ताल देनेवाले वाजे, तवला, मृदग आदि । (सुपीर) मुहसे बजनवात वाजे । 'प्रसार । कोख, उदर । 'व्यतीत । को शान नेपाल कान, वसा, मुदत सादि । सुपीर)
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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