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दर्द्धमान
( ८२ ) सु-स्वप्न वर्ग-ऋतु के, अहो ' अहो । कहो प्रिया के जल-जात कर्ण मे "त्वदीय प्रेमी-नप जागरूक' है समीप तेरे अब पाहरू बने ।”
"अये कुरगायत-लोचने । शुभे । त्रिलोक-सौदर्य त्वदीय वित्त है, गुणावली-गोभित अग-अग मे अनग का, योषित | अतरग त् ।
(८४ ) "प्रभा गरच्चन्द्र-मरीचि-तुल्य है, विभा' शरत्कज-समान नेत्र की, शुभा शरद्-हस-समा सु चाल है, विगाल तेरी छवि वाम-लोचने ।
( ८५ ) "अतीत-स्नेह-स्मृति-सी मनोरमा, पवित्र वाल-स्तुति-मी सु-कोमला', सुमानसी तू नवनीत-पेलवा नतागि कान्ते । ललिते। वरागने ।
'जागृत । 'प्रकाश । 'कोमल । 'मुलायम ।