________________
उसके बाद उनका अन्तिम निश्चय हुआ
"श्रत चलूँगा कल मै अवश्य ही मुझे महा-सिद्धि-विवाह-ध्येय है प्रवृत्त होगी कल मार्ग मासको पवित्र शुक्ला दशमी मनोरमा"
(४१७-५८) सोलहवे मर्गमे इस घटनाको |कवीद्र-कल्पनाने आगे इस प्रकार बढाया ~~
"हुआ उसी काल, अहो । अनन्तमें निदान ऐसा कि जिसे कवीन्द्र ही निशान्तमें है सुनते कभी, यदा समीर हो स्तम्भित, शान्त व्योम हो ।
(५०१-३२)
कुबेर सचालित चार अश्वका समीप हो स्यदन एक पा गया। इतस्तत सैन्धव स्वीय टापसे अ-धूलि धूलिध्वज थे बिखेरते ।
(५०१-३४) XX तुरन्त ही दिव्यरथी शतागसे हुपा महीप अवतीर्ण सामने, विनीत हो, और निबद्ध-पाणि हो यतीन्द्रसे की इस भांति प्रार्थना -- "अवाप्त की है वह उच्च भूमिका, प्रभो! मिला सो वरदान आपको,"