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________________ ५३० वर्द्धमान ( २० ) "विता रहे जीवन अन्य लोग है अजस्र आहार-विहार-मात्र मे, परन्तु है ब्राह्मण सत्य-रूप जो रहस्य-ज्ञाता बहु-धर्म-कर्म के। ( २१ ) "जिसे न आसक्ति, जिसे न गोक ही कदापि आगतुक'से चरिष्णु से, प्रमोद पाता वहु धर्म-भाव में, वही कहा ब्राह्मण विश्व में गया । ( २२ ) "विशुद्ध जो अग्नि-विदग्ध हेम-सा खरा दिखाता निकपोपलादि' पै, . विहीन है जो भय-राग-द्वेष. से वही कहा ब्राह्मण साधु से गया । ( २३ ) "तपोधनी, इन्द्रिय-निग्रही तथा महाव्रती, पीडिन लोक-ताप से, जिसे मिला सगम आत्म-शान्ति का कहा गया ब्राह्मण श्रेष्ठ है वही। - 'पानेवाला । 'जानेवाला । 'कमोटी अयवा अन्य परीक्षा-साधन ।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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