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________________ बर्द्धमान कुमार धर्मी बन बाल्यकाल में जिनेन्द्र-मपूजन-दत्त-चित्त था, समस्त सस्कार स्व-धर्म के उने बना रहे थे अति धन्य विश्व में । ( १०१ ) "मुदा गये नदकुमार एकदा सकान में प्रोफिल साधु के, जहाँ सुनी दशागा जिन-धर्म की कथा पवित्र-आत्मा वह शीघ्र हो गये। ( १०२ ) "उपद्रवी के प्रति भी न कोष हो कही गई सो अति उत्तमा नमा, कठोरता को सब भाँति त्यागना द्वितीय है मार्दव' अंग धर्म का। "सदा मनो-वाक्य-शरीर-जात जो महान कौटिल्य, उसे विनागना, तृतीय है आर्जव अंग धर्म का प्रसिद्ध जो सावु-समाज में सदा । 'मृदुता। उत्पन्न ।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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