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________________ वर्द्धमान ( ५२ ) "अखंड-सौभाग्यवती कलत्र का , अवाप्त होना कुछ खेल है नही, वही वली पा सकता उसे कि जो खपे, मरे, और जिये अनेकधा । ( ५३ ) "सुना किसी से वह दिव्य नायिका विराजती तेरह-खड' धाम पै अजस्र आरोहण' रात्रि-वार का, सुमार्ग भी दीर्घ त्रयोदशाब्द' है, ( ५४ ) "न शीघ्र-गामित्व, न मद-गामिता न यान-साहाय्य, न दड-धारणा, न पास पाथेय, न दास-मडली, तथापि जाना अनिवार्य कार्य है। ( ५५ ) "अभूरि-भिक्षा-उपवास - साधना, अवस्त्र से ही फिरना इतस्तत , शयान' होना महि-क्रोड में सदा अजस्त्र आगे बढ़ना विधेय है। 'तेरहवां गुणस्थान । 'चढ़ना। १३ साल का । "सबल । "लेटना।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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