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________________ ८४ | तीर्थकर महावीर पूर्ण होता कि कहीं अपमान, कहीं तिरस्कार और कहीं ताड़ना एवं यातनाओं का पुरस्कार भी उसे मिल जाता। फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। परम्परा का आदर श्रमण महावीर ने अपनी साधना का मार्ग स्वयं चुना था, और अपने ही विवेक एवं आत्मसाक्ष्य से उस पर अबाध गति से चलते रहे । उनके समय में भगवान् पार्वनाथ की शिप्य-परम्परा भी विद्यमान थी और उनके आचार में कुछ सामान्य-सा अन्तर भी था, परन्तु सत्य के अनन्तस्वरूप के द्रष्टा महावीर ने अपनी साधनाविधि के साथ उस प्राचीन साधना परम्परा का विरोध नहीं दिखाया, बल्कि उस पुरानी परम्परा का भी आदर किया और उसे भी सत्य की साधना मानी। यह उनकी समन्वय-प्रधान सत्य-प्रज्ञा का एक रूप था। साधना काल के चतुर्थ वर्ष में श्रमण महावीर कुमारसन्निवेश में एक उद्यान में कायोत्सर्ग करके खड़े थे। गौशालक उनके साथ था ही। भिक्षा का समय होने पर गौशालक ने कहा- "देवायं, भख लगी है, भिक्षा के लिए चलिये।" प्रभु ने कहा- "मुझे आज उपवास है।" गौशालक गुरु के साथ उपवास नहीं कर सका । वह भिक्षा के लिये सन्निवेश में गया। वहाँ पार्श्वनाथ-परम्परा के स्थविर मुनिचन्द्र अपनी शिष्यमडली के साथ एक कुम्हार की शाला में ठहरे हुए थे। चंचल और क्षुद्रस्वभावी गौशालक ने उनसे पूछा- "तुम लोग कौन हो?" पापित्य श्रमण ने कहा- "हम निम्रन्थ श्रमण हैं ।'' गौशालक ने उनके उपकरणों की ओर देखकर कहा-"वाह रे निग्रन्थ ! इतना सारा ग्रन्थ (उपकरण) तो जमा कर रखा है, फिर भी अपने को निग्रन्थ बताते हो ? कैसा मजाक है यह ! निम्रन्थ तो मेरे धर्माचार्य हैं, जो तप, त्याग और संयम की साक्षात्मूर्ति हैं।" गौशालक की क्षुद्रवृत्ति को देखकर निम्रन्थ बोले- 'लगता है जैसा तू है, वैसे ही स्वयं गृहीत-लिंग तेरे गुरु होंगे। गुरु जैसा चेला "" ____ गौशालक को क्रोध आ गया, बोला-"तुम मेरे गुरु की निन्दा करते हो, मेरे धर्माचार्य के तपस्तेज से तुम्हारा उपाश्रय जल कर राख हो जायगा । तभी तुम्हें पता चलेगा।" यों पार्वापत्य श्रमणों के साथ बहुत देर तक सड़प करके गौशालक अपने स्थान पर आया और झुमला कर प्रभु के पास आकर बोला-'भगवन् ! आज तो
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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