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लेखकीय
भगवान् महावीर इतिहास पुरुष हैं, प्रकाश-पुरुप हैं। एक लोकोत्तर पुरुष हैं । उनका दिव्य-जीवन अनन्त प्रेरणाओं और उदात्त आदर्शों का श्रोत है। उनका लोकोत्तर व्यक्तित्व शब्दों की सीमा से अतीत है, फिर भी शब्द-रेखाओं द्वारा नापने का प्रयत्न होता रहा है, हजारों-हजार वर्ष से ।
___ सर्वप्रथम आर्य सुधर्मा ने भगवान् महावीर की पावन जीवन-रेखाओं को शब्दों की स्वर्ण-रेखाओं में मंढने का प्रयत्न किया है । सुधर्मा की शब्दावलियों में महावीर का महावीरत्व जिस आमा के साथ उजागर हुआ है वह विलक्षण है, अद्वितीय है। वह वर्णन घटनात्मक नही, भावनात्मक है ' कहना चाहिए कुछ ही पृष्ठों में महावीर की साधना का समग्र दर्शन सुधर्मा ने भाव-रूप में प्रस्तुत किया है।
महावीर का घटनात्मक जीवन-दर्शन सर्वप्रथम आचार्य भद्रबाह ने 'आवश्यक नियुक्ति' में संग्रथित किया है । इतिहास की दृष्टि से यही सबसे प्राचीन और प्रथम प्रामाणिक ग्रन्थ है, जिसमें महावीर के जीवन की सुदीर्घ-साधना, पूर्व-जन्म और तीर्थकर जीवन की विविध घटनाओं का चित्रण हुआ है। इसके बाद तो उस लोकोत्तर चरित्र का चित्रण तथा शब्दावतरण होता गया, विविध काव्यों में, विविध भाषाओं में नई-नई उद्भावनाओं के साथ।
प्रस्तुत उपक्रम भी इसी पवित्र परम्परा की एक कड़ी है । २५वीं निर्वाण शताब्दी के पुनीत प्रसंग पर अपने परम श्रद्धेय के प्रति एक भाव-भीना श्रद्धा-सुमन है । हां, इस आलेखन में श्रद्धा के साथ प्रज्ञा तथा भावना के साथ विचार का प्रकाश भी अवश्य रहा है। इसलिए इसमें कुछ नवीनता, रुचिरता और दृष्टि की स्पष्टता भी पाठकों को मिल सकती है - ऐसा हमारा विश्वास है ।
भागमों (आचारांग भगवती आदि) में भगवान महावीर का जीवन-चरित्र बहुत संक्षेप में अंकित हुआ है। बाद के त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, उत्तर पुराण, महावीर चरियं आदि में काफी विस्तार के साथ आया है। इस शताब्दी में कुछ जीवन चरित्र शोध दृष्टि से भी लिखे गये हैं। घटनाओं का तिथिक्रम से वर्णन किया गया है और स्थान-स्थान पर समकालीन धर्म-नायकों के साथ तुलनात्मक विवेचन भी हुआ है । प्रस्तुत में हम दोनों शैलियों का समन्वय करके चले हैं। न घटनाओं का अत्यधिक विस्तार और न तिथिक्रम के साथ घटनाओं को आगे-पीछे करने का प्रयत्न ! वास्तव में हमने इतिहास और पुराण, सत्य और तथ्य, कथा और यथार्थ को एवं सूत्र में बांधकर चलने का प्रयत्न किया है। महावीर के विविध जीवन