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________________ साधना के महापथ पर ७१ की आंखों में भी नींद की क्षणिक झपकी आ गई और उसी झपकी में उन्होंने दस स्वप्न भी देखे। प्रातःकाल ग्रामवासी आये और यक्ष को अत्यन्त भक्ति के साथ प्रभु की उपासना करते देखा तो सबके विस्मय का ठिकाना नहीं रहा । यक्ष ने समस्त ग्रामवासियों को आज से सदा-सदा के लिये अभयदान दे दिया। पूरा ग्राम प्रभु की भक्ति में लीन हो गया। वहां उपस्थित उत्पन नामक नैमित्तक ने लोगों को प्रभु के द्वारा देखे गये स्वप्नों का यथार्थ अर्थ भी स्पष्ट कर बताया कि श्रमण महावीर इस युग के अन्तिम तीर्थकर होने वाले हैं। १ श्रमण महावीर द्वारा देखे गये दस स्वप्न और उनका फलितार्थ :श्रमण महावीर के १० स्वप्न उत्पल द्वारा कथित फल १ अपने हाथ से ताल पिशाच को १ आप मोहनीय कर्म का शीघ्र नाश मारना। करेंगे। २ सेवा में रत श्वेतपक्षी (पुस्कोकिल)। २ आप शुक्लध्यान में लीन रहेंगे। ३ सेवारत चित्रकोकिल पक्षी । ३ विविध ज्ञानमय द्वादशांगी की प्ररूपणा करेंगे। ४ दो सुगन्धित पुष्पमालाएं। ४ उत्पल नहीं समझ पाया, अत: महा वीर ने ही स्पष्ट किया “मैं साधुधर्म एवं श्रावकधर्म-यों दो प्रकार के धर्म की प्ररूपणा करूंगा।" ५ सेवा में उपस्थित श्वेत गो वर्ग। ५ श्रमण-श्रमणी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ आपकी सेवा में रहेगा। ६ पुष्पित कमलों वाला पदम-सरोवर। ६ चतुर्विध देव सेवा करते रहेंगे। ७ महासमुद्र को भुजाओं से पार ७ संसार-समुद्र को पार करेंगे। करना। ८ जाज्वल्यमान सूर्य का आलोक ८ केवलज्ञान शीघ्र प्राप्त करेंगे। चारों ओर फैल रहा है। ६ अपनी अंतड़ियों से मानुषोत्तर ८ सम्पूर्ण लोक को अपने निर्मल यश पर्वत को आवेष्टित करना। से व्याप्त करेंगे। १० मेपर्वत पर चढ़ना। १. सिंहासन पर विराजमान होकर धर्म-प्रजापना करेंगे। २ घटना वर्ष वि० पू० ५१० । विपष्टि० १०१३
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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