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________________ साधना के महापय पर | ६३ पीछे-पीछे घूमता रहा । एक दिन वह वस्त्र भगवान महावीर के कन्धे से नीचे गिर पड़ा । भगवान ने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा, तब ब्राह्मण वह वस्त्र उठाकर ले आया और रफू कराकर महाराज नन्दीवर्धन को उसने लाख दिनार में बेच दिया।' स्वावलम्बी महावीर जन्मभूमि एवं स्वजनों से अन्तिम विदा लेकर श्रमण महावीर ज्ञातखण्ड से आगे चल पड़े थे । मुहर्तभर दिन शेष रहते-रहते वे कर्मारग्राम की सीमा में पहुंच गये। ___ सध्या का झुरमुटा था, एक ग्वाला अपने बलों को लेकर उधर आया । दिन भर खेतों में काम करने से वह बहुत थक गया था, गांव में उसे गायें दुहने के लिये जाना था। बैल कहां छोड़ें ? वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ महावीर दिखाई दिये । उसने श्रमण महावीर को पुकारते हुये कहा - "बाबा ! बैलों की तरफ जरा देखना, मैं अभी आ रहा हूं।" ___ कार्य से निवृत्त हो ग्वाला लोटा, देखा तो बैल गायब ! उसने ध्यानस्थ श्रमण महावीर से पूछा-"देवार्य ? मेरे बैल कहां गये ?" __महावीर पापाण-प्रतिमा की भांति मौन खड़े थे। कुछ भी उत्तर न पाकर ग्वाला बैलों को खोजने इधर-उधर गया । वह रात भर भटकता रहा, बल नहीं मिले । पौ फटने का समय हुआ, वह थक कर चूर-चूर हो गया था, निराश हो कर जैसे ही वापस वह महावीर के निकट आया तो बैलों को वहीं पास में बैठे जुगाली करते देखा। __ग्वाले को महावीर पर बड़ा क्रोध आया-"अरे धृतं ! जानते हुये भी तूने मुझे बैल नहीं बताये और रातभर जंगल में चक्कर कटाये ! साधु होकर भी तुम इतने धूतं !" क्रोध में वह आपा भूल गया और बैलों को मारने के बजाय, रास लेकर महावीर पर ही टूट पड़ा। ग्वाले का क्रोधावेश में उठा हाथ ऊपर का ऊपर ही रह गया, उसके पांव भूमि में जैसे गड़ गये । महावीर के तपस्तेज से वह स्तब्ध हो गया। तभी महावीर के भक्त इन्द्र ने उसे ललकारते हुये कहा-"दुष्ट ! तूझे होश भी नहीं, किस पर हाथ उठा रहा है ? यह तेरे बैलों के चोर नहीं, राजा सिद्धार्थ के पुत्र राजकुमार वर्धमान हैं । घरबार छोड़कर साधना करने निकल चले है- एकाकी !" १ घटना वर्ष वि० पू० ५१२ । वर्णन-विषिष्टि० १०.३ तथा महावीर चरियं (गुणचन्द्र)
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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