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________________ जीवन का प्रथमचरण | ३९ है। ऐसे मधुर प्रसंग का काव्यात्मक वर्णन बौद्ध साहित्य में भी वर्णित है जो बोषिसत्व के गर्भावतरण पर अनुभव किया गया था। लगभग वैसा ही मधुर व आनन्दमय वातावरण महावीर के जन्म काल में आया । शास्त्रों की प्राचीन मान्यता के अनुसार तीर्थकर का जन्म सम्पूर्ण प्राणीजगत् के लिये मंगलमय होता है, इसलिये उनके जन्म-प्रसंग पर मनुष्य ही नहीं, स्वर्ग के देव-देवियां, इन्द्र एवं इन्द्राणी तक खुशी मनाते हैं । दिककुमारी नामक छप्पन देवियाँ आकर उनका प्रसूतिकर्म करती हैं । यद्यपि व्यवहारिक रूप में तो उनका प्रति-कर्म मानवी दासियां ही करती हैं, किन्तु उनकी देव-पूज्य विशिष्ट स्थिति पर सम्मान व प्रसन्नता व्यक्त करने का यह एक औपचारिक रूप माना जा सकता है, जिसमें स्वर्ग के देव-देवी भी सम्मिलित होते हैं। ___ इसी प्रसंग में कहा गया है कि महावीर की जन्मबेला में देवताओं में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। इस खुशी को व्यक्त करने के लिये इन्द्र व अगणित देवी-देवताओं ने मिलकर महावीर का जन्म-अभिषेक करने का निश्चय किया। देवताओं ने त्रिशलादेवी को गहरी नींद दिला कर नवजात शिशु को वहां से उठाया और मेरुपर्वत पर ले गये। स्वर्णकलशों में जल भर-भर कर देवतागण महावीर का जलाभिषेक करने को प्रतिस्पर्धा के साथ आगे बढ़ने लगे। एक साथ निरन्तर जलधारा गिरने से कहीं वह नवजात शिशु को असह्य न हो जाय-इस आशंका से देवराज जरा आगे बढ़कर देवताओं को रोकना ही चाहते थे कि तीन ज्ञानधारी वर्धमान ने देवराज के मन की शंका को जान लिया। सहज बाललीला के रूप में उन्होंने बांयें पांव के अंगूठे से मेरुपर्वत को जरा-सा दबाया तो बस पर्वत-शिखर कांप उठा-जैसे प्रलयकाल का तूफान आ गया हो। देवगण आशंकित हो गये, इन्द्र स्वयं भी चकितभ्रान्त होकर देखने लगा कि तभी उसने जाना-अनन्त शक्तिधर प्रभु की यह तो बाललीला है। देवराज चरणों में विनत हो गया । "प्रभो ! क्षमा कीजिये । आपके १ प्रकाश की उस कान्ति को देखने के लिये मानो अंधों को आंखें मिल गई, बधिर सुनने लगे, मूक बोलने लगे, बेड़ी-हथकड़ी आदि से जकड़े हुये प्राणी मुक्त हो गये। सभी नरकों की आग बुझ गई। प्रेतों की क्षुधाव पिपासा शान्त हो गई। सभी प्राणी प्रियभाषी हो गये। सुखद मृदुल व शीतल हवा बहने लगी। महासमुद्र का पानी मीठा हो गया। उद्यानों में पुष्प खिल उठे, आकाश में दिव्य वाद्य बजने लगे। -आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन पृ० १५२ २ विषष्टि १०।२।५२ ।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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