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________________ ३४ | तीर्थंकर महावीर रात्रि में त्रिशलादेवी ने देखे । अर्थात् देवानन्दा का गर्भ त्रिशलादेवी की कुक्षि में साहरित कर दिया गया। चतुर्दश स्वप्न जन-परम्परा में माना गया है कि जब तीर्थकर और चक्रवर्ती की महान आत्मा किसी भाग्यशालिनी माता के गर्भ में आती है तो माता चौदह महान शुभ स्वप्न देखती है। यह स्वप्न निम्न प्रकार हैं- (और साथ ही उनके द्वारा सूचित होने वाली फलश्रुति भी)। स्वप्न स्वप्न-सूचित फलश्रुति १ श्वेतवृषभ मोहरूप कीचड़ में धंसे हुये आत्म-रथ का उद्धार करने में समर्थ । २ श्वेतहस्ती महान, बलिष्ठ एवं जगत श्रेष्ठ । ३ केशरी सिंह धीर, वीर एवं निर्भय तथा सब पराक्रम सम्पन्न । ४ लक्ष्मी तीन लोक की समृद्धि का स्वामी । ५ पुष्पमाला दर्शनीय, नयनवल्लभ एवं सबको प्रिय तथा ग्राह्य हो । ६ चन्द्रमण्डल मनोहर तथा भवताप से तप्त जगत को शीतलता एवं शान्ति प्रदान करने वाला। ७ सूर्य अज्ञान-अंधकार का नाश करनेवाला। ८ महाध्वज कुल एवं वंश की प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाला यशस्वी एवं सबमें उच्च । अनेक गुणों एवं विभूतियों को धारण करने की योग्यता (पात्रता) से युक्त। १० पद्मसरोवर जगत के पाप-ताप को शान्त कर शीतलता प्रदान करने में समर्थ । ११ क्षीरसमुद्र अपार गम्भीरता एवं मधुरता का समन्वय करनेवाला । १२ देबविमान दिव्यता धारण करने वाला, देवों में भी पूज्य । १३ रत्नराशि समस्त गुणरूप रत्नों का समूह । १४ जाज्वल्यमान अग्नि करता आदि दोषों से मुक्त असाधारण तेजस्विता से (निर्धूम अग्नि) सम्पन्न । १ आचारांग सूत्र, श्रुतस्कन्ध २ अ० २४ । २ कल्पसूत्र ३४ से ४७
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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