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________________ पुराणगाथा की जीवनदृष्टि प्रथम खण्ड में हमने भगवान महावीर के पूर्व जन्म की कुछ विशिष्ट घटनाओं की चर्चा की है । कुछ इतिहास लेखक उन्हें पौराणिककथा (मिथोलोजी) कह कर उपेक्षित कर देते हैं, किन्तु यह उपेक्षा महावीर के समग्र जीवन-दर्शन को समझने में बाधक बनती है, ऐसा हमारा विश्वास है। भगवान महावीर के सम्पूर्ण जीवन-दर्शन को समझने के लिए महावीर को सिर्फ महावीर के रूप में ही नहीं, किन्तु महावीर को सामान्य आत्मा के रूप में उपस्थित कर दर्शन और सिद्धान्त की दृष्टि से उसकी विकास-यात्रा को समझना आवश्यक होता है । पूर्वमवों के चित्रण में भले ही कथा कुछ पौराणिक रंग में रंगी हो, किन्तु उनमें महावीर का, यों कहें कि सम्पूर्ण जन-दर्शन का हृदय स्पष्ट बोल रहा है, वहाँ जैन-दृष्टि जीवन्त रूप में विद्यमान है। इसी कारण उस पौराणिक गाथा का दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक मूल्य है और यह जीवन के लिए प्रेरणादायी भी है तथा ऐतिहासिक साक्ष्य भी है ही, प्राचीन साहित्य के रूप में।' पूर्वभवों की घटनाओं में महावीर की जीवन-दृष्टि का त्रिकोण, जो हमारे समक्ष स्पष्ट हुआ है, वह इस प्रकार है : (१) यह आत्मा अनादिकाल से भवयात्रा कर रहा है, इस यात्रा में जब साधना, सेवा, तपश्चर्या, एवं त्याग आदि उत्तमगुणों की आराधना की जाती है, तभी आत्मा परमात्म-पद को प्राप्त कर सकता है । (२) प्रत्येक आत्मा का सुख-दुख, उत्थान-पतन, अपने कर्म -- (क्रिया एवं तदनुसार बंधे हुये कर्म-बंध) के अनुरूप ही होता है । शुभकर्म का शुभफल एवं अशुभ कर्म का अशुभ-फल निश्चित रूप से प्राप्त होता है। ६ इतिहास को समझते के तीन साधन हैं-साहित्य, शिल्प और प्राचीन अभिलेख। भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन प्राचीन जैन साहित्य में बड़े विस्तार के साथ मिलता है अतः उन्हें सर्वथा अनैतिहासिक नहीं कह सकते ।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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