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________________ २६४ | तीर्थकर महावीर सहन्धयार उन्नोमो, पहा छायाताया। बन्न रस गन्ध फासा पुग्गला तु लक्व ।। -उत्त० २८।१२ शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श ये पुद्गल के लक्षण हैं। जीव का लक्षण नाणं बसणं चेब, चरितं च तवो तहा। बीरियं उबमोगो य एवं जीवस्स लक्षणं॥ -उत्त० २८।११ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग ये जीव के लक्षण हैं । नस्थि के परमाणु पोग्गलमेले विपएसे।। जपणं अयं जीवे न जाएवान मए वा वि॥ -भगवती १२१७ इस विराट् विश्व में परमाणु जितना भी ऐसा कोई प्रदेश नहीं है, जहां यह जीव न जन्मा हो, न मरा हो। द्रव्य का लक्षण गुणाणमासो वव्वं, एगवव्वस्सिया गुणा। लपक्षण पज्जवाणंतु, उममो मस्सिया भवे॥ -उत्त० २८६ द्रव्य गुणों का आश्रय है-- आधार है। जो प्रत्येक द्रव्य के आश्रित रहते हैं, वे गुण होते हैं। पर्यायों का लक्षण दोनों के अर्थात् द्रव्य और गुणों के आश्रित रहना है। अस्थित्त अस्थित परिणमा। नरिपत्त नपित परिणमह ॥ -भगवती १२३ अस्तित्व, अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है, अर्थात् सत् सदा सत् ही रहता है और असत् सदा असत् । लोक का आधार अजीवा जीव पाठ्यिा । जीवा कम्मपइदिव्या ।। -भगवती ११६ __ अजीव (जड़ पदार्थ) जीव के आधार पर रहे हुए हैं और जीव (संसारी प्राणी) कर्म के आधार पर रहे हुए हैं। धम्मो महम्मो मागासं बब्वं इक्किक्कमाहियं । अणन्ताणि यवाणि कालो पुग्गलजन्तयो॥ -उत्त० २८1८ धर्म, अधर्म और आकाश-ये तीनों द्रव्य संख्या में एक-एक हैं। काल, पुद्गल और जीव ये तीनों द्रव्य अनन्त हैं।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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