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________________ सिद्धान्त-साधना-शिक्षा | २५६ मोक्ष-मार्ग [जीवमात्र का मन्तिम लक्ष्य है-मोन (परमानन्द)। उस लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग का ज्ञान हो, तभी उसको प्राप्ति का प्रयत्न सार्थक हो सकता है। मतः मोल और उसके मार्ग (साधनों) का विवेचन यहां किया गया है मापस चेव परित तबो तहा। एस मागुत्ति पन्नत्तो विहि बरवसिहि ॥ -उत्त. २००२ वस्तु के स्वरूप को जानने वाले-परमदर्शी जिनों ने शान, दर्शन, पारिष और तप इस चतुष्टय को मोक्ष-मार्ग कहा है। आहेतु विना पर पमोक्त। -सूत्र. १३१२।११ विद्या (ज्ञान) और चारित्र (क्रिया) के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया जाता है। माग बागई भावे वंसज प मदहे। परितन निगिव्हाइ, तवेण परिसुन्माइ ।। .-उत्तरा० २८०३५ मान से जीव पदार्थों को जानता है, दर्शन से श्रद्धा करता है । चारित्र से मानव का निरोध करता है और तप से कर्मों को क्षीण कर शुद्ध होता है। ज्ञान का स्वरूप एवं पंचविहं नाणं बवाणं य गुणाण । पन्नवाणं - सम्मेति नाणं नाणीहि देसि ॥ -उत्त० २८५ सर्व द्रव्य, उनके सर्व गुण और उनकी सर्व पर्याय के यथार्थ ज्ञान को ही शानी भगवान् ने मान कहा है । उसके पांच भेद है। तत्व पंचविहं ना सु मामिनियोहियं । मोहिनावं तु तइयं मचना - केवलं ॥ -उत्त० २८।४ जान पांच प्रकार का है-१. तज्ञान, २. माभिनिवोधिक-मतिज्ञान, ३. अवधिज्ञान ४. मनःपर्ययज्ञान ५. केवलज्ञान ।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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