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________________ प्रथम प्रवचन यह माना जाता है कि भगवान महावीर का प्रथम प्रवचन केवलज्ञान प्राप्त होने पर ऋजुबालुका नदी के तट पर हुआ। वहां से चलकर महावीर मध्यम पावा में आये और वहां महासेन उद्यान में उनका जो प्रवचन हुआ, वह भले ही दूसरा प्रवचन था, किन्तु सार्थकता की दृष्टि से वही पहला प्रवचन माना जाता है। इसी प्रवचन में इन्द्रभूति आदि विद्वानों के समक्ष दर्शन एवं धर्म की गंभीर विवेचना महावीर ने की। प्रथम प्रवचन का मुख्य विषय क्या था. इस सम्बन्ध में कुछ मतभेद भी हैं। आवश्यक नियुक्ति' के अनुसार तीर्थकर सर्वप्रथम सामायिक आदि व्रत (महाव्रत), षड़ जीवनिकाय एवं भावना का उपदेश देते हैं। दूसरे मत के अनुसार भगवान ने सर्वप्रथम त्रिपदी (उपन्ने इ वा, विगमे इ वा, धुवे ई वा) का ज्ञान दिया। यह तो प्रायः निश्चित मान्यता है कि प्रथम इन्द्रभूति आदि विद्वानों के साथ लंबी दार्शनिक चर्चा चली। फिर तीर्थ की स्थापना हुई और तीर्थ स्थापना के पश्चात् भगवान ने अपना उपदेश दिया । यह हो सकता है कि पहले त्रिपदी का ज्ञान दिया हो, उससे महावीर ने अपने दर्शन को स्पष्टता दे दी और दर्शन की विशद व्याख्या के बाद आचार-धर्म की विवेचना की हो, क्योंकि विपदी वास्तव में संपूर्ण जैन दर्शन की चाबी है और दर्शन के आधार पर ही धर्म की व्याख्या की जाती है। प्रवचनों की भाषा भगवान महावीर के युग में संस्कृत, विद्वानों की भाषा मानी जाती थी। वेद, उपनिषद् आदि उसी भाषा में थे । स्त्री-शूद्रों को संस्कृत पढ़ने का भी अधिकार नहीं १ गाथा २७१, देखें 'महावीर कपा' पृष्ठ २१६ (गो० जी० पटेल) २ त्रिषष्टि० १०१५।१६५ पाते संघ चतुर्षवं प्रौव्योत्पादम्यात्मिकाम् । इमाभूति प्रभूतानां निपनी न्याहरत् प्रभुः ।।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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