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________________ कल्याण-यात्रा | २५१ श्रद्धाञ्जलि भगवान महावीर के परिनिर्वाण पर उनके संघ का दायित्व गणधर सुधर्मा के कंधों पर आया । भगवान् की स्मृति में गणधर सुधर्मा ने अपने आराध्य के प्रति बड़ी ही भावभीनी शब्दावली में संस्तुति करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इस श्रद्धांजलि की कुछ पंक्तियां दुहरा कर हम उस लोकोत्तर प्रकाशपुरुष प्रभु के चरणों में वंदना कर लेते हैं-- ___ वृक्षों में जैसे शाल्मलिवृक्ष श्रेष्ठ होता है, वनों में नन्दनवन श्रेष्ठ है उसी प्रकार दीर्घप्रज्ञ महावीर ज्ञान एवं शील में श्रेष्ठ है। जैसे उदधि (समुद्र) में स्वयंभूरमण समुद्र, नागकुमारों में धरणेन्द्र, रसों में इक्षुरस श्रेष्ठ एवं जयवंत हैं, उसी तरह तप-उपधान में महामुनि (महावीर) श्रेष्ठ हैं। जैसे हाथियों में ऐरावत, वनचरों में सिंह, जल में गंगाजल और पक्षियों में वेणुदेव गरुड़ प्रधान श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार निर्वाणवादियों में ज्ञातपुत्र श्रेष्ठ हैं। जैसे योद्धाओं में वासुदेव, पुष्पों में अरविंद, क्षत्रियों में दन्तवक्र श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार ऋषियों में श्रमण वर्धमान श्रेष्ठ हैं। दानों में जैसे अभयदान, सत्य में जैसे निरवद्य वचन, तप में जैसे उत्तम ब्रह्मचर्य तप श्रेष्ठ है उसीप्रकार संसार में ज्ञातपुत्र उत्तम व श्रेष्ठ श्रमण हैं।" सूवातांग अध्ययन ६
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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