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________________ कल्याण-यात्रा | २४७ लग रहा था- भगवान् का सान्निध्य अब कुछ ही दिनों का है। पावा के राजा हस्तिपाल ने भगवान् से अपनी रज्जुक सभा (लेखशाला) में वर्षावास करने की प्रार्थना की। भगवान् वहीं पधारे। चातुर्मास के तीन मास और १४ दिन व्यतीत हो गये। कार्तिक अमावस्या का दिन निकट आया । अंतिम देशना के लिए अंतिम समवसरण की रचना हुई। देवराज इन्द्र ने भावविभोर होकर भगवान की संस्तुति की, फिर राजा हस्तिपाल ने मुक्तमन से भगवान की अभिवंदना की। भगवान महावीर ने अपने तीर्थकर जीवन में अब तक हजारों देशनाएं दी थीं और हजारों-लाखों भव्य प्रतिबुद्ध हुए। आज अतिम समय में जीवन-भर के उपदेशों का उपसंहार करना था, इसलिए भगवान ने विशाल धर्मसभा में दीर्घकालीन देशना प्रारंभ की। इस देशना की विशिष्टता यह थी कि-अन्य प्रवचनों में जहां समयसमय पर गूढ़ तत्त्वचर्चाएं भी आती थीं, वहाँ इस देशना में प्रायः आचार-चर्चा ही मुख्य रही । भगवान् ने सदाचार का महत्त्व, सुकृत एवं दुष्कृत का फल बताने वाले ११० अध्ययनों का प्रवचन किया। इसके बाद उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययनों का व्याकरण किया । उत्तराध्ययन में भी मुख्यता आचार-धर्म की है। विनय, अनुशासन, क्षमा-तितिक्षा, निस्पृहता, ब्रह्मचर्य, संयम, ताभ्यास, तपश्चरण, भावना आदि विभिन्न विषयों पर साररूप में भगवान् ने प्रकाश डाला। उत्तराध्ययन को भगवान् महावीर का 'शिक्षा-संग्रह' भी कहा जा सकता है। इस प्रकार १६ प्रहर तक भगवान् अपने शिष्य-समुदाय को संबोधित कर अन्तिम उपदेश सुनाते रहे। इस सभा में अनेक प्रकार की प्रश्नचर्चाएं भी बीच-बीच में होती रहीं। राजा पुण्यपाल ने अपने ८ स्वप्नों का फल पूछा । गणधर इन्द्रभूति ने पूछा-"भंते ! आपके निर्वाण के पश्चात् पांचवां मारा कब लगेगा?" भगवान ने उत्तर दिया-"तीन वर्ष, साढ़ आठ मास बीतने पर।" फिर गोतम ने आगामी उत्सर्पिणी में होने वाले तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव-बलदेव यादि के सम्बन्ध में प्रश्न किये, भगवान् ने सभी का संक्षिप्त परिचय दिया। गौतम का स्नेहबंधन-विमोचन भगवान् महावीर के प्रति गौतम के मन में अत्यधिक अनुराग था। इसे हम शुभ धर्मानुराग भले ही कह दें, किन्तु वीतराग महावीर की दृष्टि में यह राग भी तो १५५ अध्ययन सुखविपाक के, ५५ अध्ययन दुःखविपाक के। -समवायांग ५५
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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