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________________ २१६ | तीर्थकर महावीर का सिद्धान्त भी जीवित हो रहा है इसलिए भगवान महावीर द्वारा किये गये संस्कारशुद्धि के प्रयत्नों को एक झांकी यहां प्रस्तुत की जा रही है। १. अर्जुनमाली : क्रूरता का दैत्य, करुणा का देवता राजगृह में अर्जुन नामक मालाकार (माली) रहता था। नगर के बाहर उसका एक बहुत सुन्दर व्यावसायिक उद्यान था। उस उद्यान में उसके कुलदेवता मुद्गरपाणि यक्ष का प्राचीन मंदिर था। अर्जुन बहुत सबेरे उठकर अपनी पत्नी बंधुमती के साथ उद्यान में जाता। विभिन्न रंगों व अनेक जातियों के फूलों को बीनता, उनके गुलदस्ते, गजरे, हार व मालाएं बनाकर नगर में बेचता और अपनी आजीविका चलाता था। एकबार राजगृह के कुछ बदमाशों की एक टोली जिसमें छह बदमाश थे, उद्यान में घुस आई। बंधुमती के सुकुमार सौन्दर्य पर मुग्ध होकर बलात्कर करना चाहा। मौका देखकर अर्जुन को रस्सियों से बांध दिया, और फिर बंधुमती को घेरकर उसके साथ स्वच्छंद कामाचार किया। अपनी नाक के नीचे दुष्टों का अत्याचार और पत्नी का दुराचार देखकर अर्जुन का खून खौल उठा। वह रस्सियों से बंधा था, क्या कर पाता? क्रोधावेश में उसने अपने कुलदेवता यक्ष को कोसना शुरु किया- "बचपन से मैं तुम्हारी पूजा-उपासना करता आया हूं, लेकिन आज जब में विपत्ति में फंसा तो तुम प्रस्तर की भांति निश्चेष्ट खड़े मेरा अपमान होता देख रहे हो ? लगता है, तुम में कुछ भी सत्व नहीं है।" अर्जुन की तड़पमरी पुकार का असर हुआ। यक्ष अर्जुन की देह में प्रविष्ट हो गया, अर्जुन के बधन टूट गये । क्रोध और बावेशवश वह उन्मत्त-सा हो गया। मुद्गर हाथ में लिए दैत्य की भांति उठा और काम-रत छहों पुरुषों एवं अपनी एक स्त्री (बंधुमती) की हत्या कर डाली। इस पर भी अर्जुन का कोष शांत नहीं हुआ। उसके मन में मनुप्यजाति के प्रति भयंकर घृणा का भाव जाग उठा, वह भूखे शेर की भांति प्रतिदिन मनुष्यों पर झपटकर छह पुरुष एवं एक स्त्री की हत्या करके ही दम लेता। कुछ ही दिनों में रमणीय उद्यान के परिपावं में नर-कंकालों का ढेर लग गया। अर्जुन के बातंक से जनता का आवागमन बंद हो गया, गलियां और राजमार्ग सुनसान हो गये । राजगृह के द्वार बंद कर दिये गये और किसी भी व्यक्ति को नगर के बाहर अर्जुन की दिशा में पाने का सख्त प्रतिरोध कर दिया गया। उसी प्रसंग पर भगवान महावीर राजगृह में पधारे ।' अर्जुन के पातंक के १ वीमा का बगहा पर्व, वि.पू. ४६५-४६६
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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