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________________ कल्याण-यात्रा | १७९ नहीं हुआ। आखिर देव ने कहा-"मैं तुम्हारे समस्त धन-वैभव को, स्वर्ण-भण्डार को नगर के राजपथ पर, गलियों और चौराहों पर फेंक दूंगा, तुम्हारे सब खजाने खाली कर डालूंगा।" चुल्लशतक मौन रहा । दो बार तीन बार यही बात सुनने पर वह विचलित हो गया-"यह दुष्ट कहीं सचमुच मेरा धन कुछ चौराहों पर फेंकन दे।" धन के प्रति रही हुई गुप्त वासना प्रसंग पाकर प्रकट हो गई। वह देव को पकड़ने उठा । देव आकाश में उछाल लगा गया। चुल्लशतक का चिल्लाना सुनकर उसकी पत्नी बहुला आई । पूछा--"क्या हुआ ?" चुल्लशतक ने उस भयावने दृश्य की बात कही। बहुला ने कहा-"आपको भ्रम हुआ है। घर में सब कुशल हैं।" चुल्लशतक को अपनी मनो भ्रांति पर पश्चाताप हुआ। उसने सोचा--"धन की ममता ने मुझे चंचल बना दिया, अतः इस ममत्व के सूश्मशल्य को निकालना चाहिये ।" उसने मन को निर्मम की साधना में लगाया। अन्त में समाषि और समता के साथ उसने देह-त्याग किया।' ६. तत्वज्ञ श्रवाल- कोलिक श्रमणोपासक कुंडकोलिक का त्याग एवं धर्म-साधना तो विशिष्ट थी हो, किन्तु इनसे भी विशिष्ट थी-तत्वज्ञान-जनित अड़िग धर्मश्रद्धा। उसकी तत्वरुचि और प्रतिवादियों को निरुत्तर करने की तर्क-कुशलता को देखकर स्वयं भगवान महावीर ने भी मुक्तमन से प्रशंसा की थी। कुडकोलिक कांपिल्यपुर का प्रमुख धनपति था। इसके पास छह-छह कोटि हिरण्य एवं गायों के छह बज थे। भगवान महावीर जब उस नगर में पधारे तो कुडकोलिक ने उनका उपदेश सुना और तत्त्व-बोध ग्रहण कर श्रावक धर्म स्वीकार किया। एक बार मध्याह्न के समय वह अपनी अशोकवाटिका में बैठा धर्म-चिन्तन कर रहा था कि एक दिव्य आकृतिषारी पुरुष उसके सामने आया और बोला"कुडकोलिक ! श्रमण महावीर द्वारा बताया गया धर्म (धर्म-प्राप्ति) उपयुक्त नहीं है, क्योंकि उसमें उत्थान (उचम) और पराक्रम पर बल दिया गया है, जब कि सब कुछ तो नियति के आधार पर ही चलता है। मंबलिपुत्र गोशालक की धर्म-प्रशप्ति १ उपासक दशा, अध्ययन दशा ५। २ सकीसवाँ वर्षावास (वि.पू. ४६१ वर्ष)।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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