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________________ कल्याण-यात्रा | १७७ चुल्लनीपिता नहीं उरा, वह स्थिर रहा । उस क्रूर दैत्य ने सचमुच ही उसके बड़े पुत्र को लाकर उसी के समक्ष तीन टुकड़े किये और उसके खून के छींटे चुल्लनी. पिता के शरीर पर डाले। वह शान्त रहा। दूसरे और तीसरे पुत्र को भी उसने वैसे ही उसके सामने टुकड़े-टुकड़े कर तेल के कड़ाहे में डाल दिये । चुल्लनीपिता फिर भी पुत्र-मोह से व्याकुल नहीं हुआ, वह पारिवारिक सम्बन्धों की अनित्यता का विचार करता हुआ समभाव में स्थिर रहा। उस क्रूर दैत्य ने आखिर एक भयंकर अट्टहास के साथ कहा-"यदि तू अब भी मेरा कथन नहीं मानता है और पुत्रों के मर जाने पर भी अपना ढोंग नहीं छोड़ता है तो इस बार में तेरी माता को भी इसोप्रकार लाकर टुकड़े-टुकड़े कर डालूंगा।" चुल्लनीपिता के हृदय में माता की ममता जाग उठी । -"यह दुष्ट सचमुच ही ऐसा अनर्थ न कर डाले"-इस आशंका से प्रांत होकर वह चिल्लाता हुआ उसे पकड़ने दौड़ा । दुष्ट दैत्य छुमन्तर हो गया, चल्लनीपिता अंधकार में एक खम्भे से टकरा कर गिर पड़ा। मां के मोह में वह जोर-जोर से रोने लगा। __ माता भद्रा ने पुत्र का रुदन सुना, वह दौड़कर आयी। पूछा-"पुत्र ! क्या हुआ ?" चुल्लनीपिता ने सब घटना सुनायी। मां ने कहा-"पुत्र ! तुम्हारे पुत्र सकुशल हैं, मैं भी कुशलतापूर्वक हूं, किसी दुष्ट देव ने तुम्हें अपनी साधना से विचलित करने का यह प्रयत्न किया है. तुम चलित चित्त हो गये, इसका अर्थ है-मेरे प्रति तुम्हारे मन में अभी भी मोह के संस्कार दृढ़ हैं। तुम अपनी कषाय-संक्लिष्ट चित्त-वृत्तियों की आलोचना करो, और मोह के संस्कारों को निर्मूल बनायो । निर्मोह ही व्रत आराधना का सार है।" चुल्लनीपिता ने माता की शिक्षा के अनुसार प्रायश्चित किया और ममता की केन्द्र 'मां' के प्रति भी निर्मोहभाव का अभ्यास कर अन्त में समाधि-मरण प्राप्त किया।' ४. बेहासक्ति का निवारण-सुरादेव चुल्लनीपिता के अन्तर्मन में जिसप्रकार पुत्रों से अधिक माता के प्रति मोह पा, उमीप्रकार श्रमणोपासक सुरादेव के मन में अपने शरीर के प्रति ममत्व का सूक्ष्म बन्धन था। जब तक वह बन्धन नहीं टूटे, साधना निःशल्य कैसे बने ? जैसे १ उपासक दशा, अध्ययन ३
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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