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________________ १५२ | तीर्थकर महावीर पा। सेचनक हाथी को जंगल से पकड़ कर श्रेणिक की हस्तिशाला में लाना नंदिषेण की गज-कला का ही एक अद्भुत चमत्कार माना जाता है। यह बचपन से ही वैभवविलास में पला था, फिर महाराज श्रेणिक का विशेष स्नेहभाजन होने के कारण सुखभोग के अपार साधन उसके लिये पद-पद पर फूलों की भांति बिछे रहते थे । भगवान् महावीर जब राजगृह में आये और मेघकुमार ने प्रव्रज्या ग्रहण की तो, एक दिव्य प्रेरणा नंदीषेण के हृदय में भी उमड़ी, वह भी राज्य सुख-वैभव का त्याग कर साधना के कठिन पथ पर बढ़ने को आतुर हो गया। महाराज श्रेणिक ने और नंदीषेण के अनेक इष्ट मित्रों ने उसे बहुत रोका, टोका-"नंदीषेण ! तुम्हारे जैसा रसिक और भोगप्रिय राजकुमार एक ही दिन में, नहीं, कुछ ही क्षणों में वैराग्य धारण करने का कठोर निश्चय कर इस पथ पर बढ़ सकता है, यह बात स्पष्ट देखते हुए भी मन को अविश्वसनीय-सी लगती है। तुम अभी रुको, मन को साधो । मेघ का अनुसरण भले तुम कैसे करोगे ? उसकी वृत्तियां प्रशान्त थीं। तुम्हारी वृत्तियों में अभी भोगविलास का ज्वार है, कुछ दिन और रुको।" नंदीषेण के मन में वैराग्य की तीन लहर उठी थी, श्रमण बनने का तीव्र संकल्प जगा था। उसने कहा-"मैं तप व ध्यान के द्वारा स्वभाव और संस्कार को बदल गलगा।" इसी विश्वास पर उसने सबकी सुनी-अनसुनी कर दी और भगवान महावीर के पास जाकर दीक्षित हो गया। दीक्षित होने के बाद भी नंदीषेण के मन में एक खटक थी कि मित्रों ने टोका पा-"तुम्हारी वृत्तियों में ज्वार है..."संस्कारों में अनुराग है .....। अतः कहीं यह ज्वार और अनुराग उसे उन्मार्ग में बहा न दें।" नंदीषण ने इन रागानुबंधि वृत्तियों को क्षीण करने के लिये कठोर तपश्चरण प्रारम्भ कर दिया, जब कभी मन में वासना का वेग प्रबल हो जाता तो वह लम्बे उपवास कर उसे दबाने का प्रयास करते । चिलचिलाती धूप में बैठकर आतापना लेते, कड़कड़ाती सर्दी में वस्त्र उतार कर खडे हो जाते । विकट तप और अनेक परीषहों को सहन करते हुए वे साधना के उत्कृष्ट पथ पर निरन्तर बढ़ते चले गये। तपःसाधना के दिव्य प्रभाव से अनेक प्रकार की चमत्कारी शक्तियां (लब्धियाँ) भी उन्हें प्राप्त हो गई। एक बार ? तप (दो दिन का उपवास) का पारणा लेने भिक्षार्य पर्यटन करते हुए मुनि नंदीषेण नगर की एक प्रमुख गणिका के प्रासाद में पहुंच गये । हार में प्रविष्ट होते ही मुनि ने कहा-'धर्मलाभ' । एक कृशकाय तपस्वी श्रमण, 'धर्मलाभ' का उद्घोष करता हुबा गणिका के घर में प्रवेश कर रहा है, यह देख सभी दर्शकों को बड़ा बाश्चर्य हुमा । गणिका भी
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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