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________________ १२८ | तीर्थंकर महावीर आश्चर्य और संयोग की बात है कि श्रमण महावीर के जीवन में उपसर्गों का प्रथम चक्र एक अबोध अज्ञान ग्वाले द्वारा चलाया गया, और कष्टों का आखिरी रूप भी एक ग्वाले द्वारा कानों में कीलें ठोंक कर प्रस्तुत हुआ। तपश्चरण आचार्य भद्रबाहु, जो श्रमण महावीर के पहले जीवनी-लेखक माने जा सकते हैं, उन्होंने कहा है - श्रमण महावीर का तपःकर्म, अन्य तेईस तीर्थंकरों की अपेक्षा अधिक उग्र एवं अधिक कठोर था।' यद्यपि उनका साधना-काल बहुत लम्बा नहीं था, पर उपसगों की श्रृंखला ज्वालामुखी की भीषण ज्वालाओं की भांति एक के बाद एक उछालें मार-मार कर संतप्त करती रहीं। उनके द्वारा आचरित तपःसाधना की तालिका इस प्रकार है :-- छह मासिक तप-१ (१८० दिन का) पांच दिन कम छह मासिक तप-२ (१७५ दिन का) चातुर्मासिक तप (१२० दिन का एक तप) तीन मासिक तप-२ (९० दिन का एक तप) साद्विमासिक तप-२ (७५ दिन का एक तप) द्विमासिक तप-६ (६० दिन का एक तप) सार्ध मासिक तप-२ (४५ दिन का एज तप) मासिक तप-१२ (तीस दिन का एक तप) पाक्षिक तप-७२ (१५ दिन का एक तप) भद्रप्रतिमा-१२ (२ दिन का तप) महाभद्र-प्रतिमा-१ (४ दिन का तप) सर्वतोभद्र प्रतिमा-१ (दश दिन का एक पप) सोलह दिन का तप-१ अष्टम भक्ततप-१२ (तीस दिन का एक तप) षष्ट भक्त तप-२२६ (दो दिन का एक तप) इसके अतिरिक्त दसम-भक्त (चार दिन का उपवास) आदि अन्य तपश्चर्याएं भी की। प्रभु की तपश्चर्या निर्बल होती थी और उसमें ध्यान-योग की विशिष्ट प्रक्रियाएं भी चलती रहती थीं। १ उपतबोकम्म विसेसबो पदमाणस्स। २ सम्बतबोकम्मं बपाप बासि वीरस्स। बावस्यकनियुक्ति २६२ । -बावस्यकनिति ४१६
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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