SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ | वीर्यकर महावीर झंझावातों के बीच श्रमण महावीर को साधना करते काफी समय बीत चुका था। पूर्व-प्रांत के प्रायः सभी नगरों, जनपदों एवं ग्रामों में उनका परिभ्रमण हुआ, अनेक राजन्य एवं बेष्ठी उनके भक्त भी बन गये, किन्तु फिर भी ऐसे अज्ञान लोगों की कमी नहीं थी, जो समय-समय पर घमण को ध्यानस्थ व भिक्षावृत्ति करते देखकर उन पर ऋद्ध न हो जाते और बड़ी निर्ममता से उन पर प्रहार करने उबल न पड़ते। छोटे-छोटे ऐसे अनेक प्रसंग हैं, जिनकी चर्चा हमने छोड़ दी है, पर उनके अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि अब भी श्रमण महावीर की साधना में विविध विघ्नों एवं संकटों के संझवात उठते ही चले जा रहे थे। चमरेन्द्र की शरणागति के बाद एक बार भगवान् महावीर भोगपुर नामक ग्राम में आकर घ्यान किये खड़े थे। वहां उन्हें देखते ही माहेन्द्र नामक एक क्षत्रिय को क्रोध आ गया। बक-सक करता हुआ वह श्रमण महावीर के निकट आया, और गालियां बकने लगा। श्रमण महावीर जब मौन रहे तो उसका क्रोध और उबल पड़ा और वह खजूर की गीली टहनी लेकर उन्हें पीटने दौड़ा। किन्तु तभी सनत्कुमार देवेन्द्र ने माहेन्द्र को ललकार कर भगा दिया। वहां से भ्रमण करते हुये महाश्रमण नंदी-ग्राम में आये तो वहां के अधिपति नन्दी क्षत्रिय ने उनका भाव-भीना स्वागत भी किया। कुछ समय बाद श्रमण महावीर मेंढिया ग्राम आये तो वहां एक ग्वाला उन्हें देखते ही पता नहीं क्यों बाग-बबूला हो गया और रस्सी लेकर उन्हें मारने दौड़ा। इस प्रकार समय-समय पर श्रमण महावीर की साधना में संकटों के झंझावात उठते और शान्त होते जाते। आश्चर्य तो यह था कि परम वीतराग, महान कारुणिक अहिंसामूर्ति तपोधन को भी लोग मिथ्या अहकार, स्वार्थ एवं भ्रमवश (ख) आवश्यक नियुक्त आदि श्वेताम्बर ग्रन्थों में वर्णित इस घटना प्रसंग में दिगम्बर अन्य कुछ मतभेद रखते हैं। मुख्य बात-वहां भगवान महावीर के अभिग्रह का उल्लेख भी नहीं है। चन्दना द्वारा मिक्षा अवश्य दिलाई जाती है, चन्दना को चेटक की पुत्री माना गया है। -देखिये उत्तरपुराण ७॥३३८ १ षटना वर्ष वि. पू. ५०१। २ पटना वर्ष वही। ३ घटना वर्ष वही।
SR No.010569
Book TitleTirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy